हमने इतनी मुश्किल से चीज़ें सही की थी लेकिन अब ये सब सुनना तकलीफ देता है- अर्जुन कपूर

अर्जुन कपूर और परिणीति चोपड़ा जल्द ही नमस्ते इंग्लंड के साथ बड़े परदे पर वापसी करने वाले हैं, इस बीच उन्होंने अनुपमा चोपड़ा को बताया कि वो #metoo कैंपेन को लेकर क्या सोचते हैं और इन सबने उनकी निजी ज़िंदगी पर क्या असर डाला है
हमने इतनी मुश्किल से चीज़ें सही की थी लेकिन अब ये सब सुनना तकलीफ देता है- अर्जुन कपूर

अनुपमा चोपड़ा: अर्जुन- परिणीति पिछले 10 दिन इतने विवादित रहे हैं, इतने मुश्किल रहे हैं। ज़ाहिर है कि इसे शरू होने में बहुत वक़्त लग गया, मी टू को इंडिया तक पहुँचने में बहुत वक़्त लग गया। लेकिन मैं बस ये सोच रही थी कि यह बहुत गलत है। हर किसी की गलती है। एक तरह से सिर उठाना मुश्किल हो गया है कि, हो क्या रहा है?

अर्जुन: हर सुबह के साथ एक नया केस सामने आ रहा है। हम अपनी फिल्म के लिए लगातार इंटरव्यूज कर रहे हैं। इंटरव्यू के दौरान हम फ़ोन इस्तेमाल नहीं करते। ब्रेक में जब भी फ़ोन उठाओ तो एक नयी जानकारी सामने आती है जो आपको महसूस करवाती है कि आखिर चल क्या रहा है? अभी बहुत कुछ होना बाकी है। ये बहुत ज़रूरी है कि एक ही बिरादरी का होने के नाते हमें इन चीज़ों को स्वीकार करना होगा। हम सारी ज़िंदगी इसे नकार कर जी सकते हैं लेकिन ये हमारी बदतमीज़ी होगी। पहली प्रतिक्रिया होती है कि दबा दिया जाए, ये बिरादरी वाली बात नहीं है, इंसान का स्वाभाव ही ऐसा है। जो चीज़ हमेशा से इतनी दबी हुई रही है और अचानक वो आपके मुह पर आकर खड़ी हो जाए, आप हमेशा सोचते थे कि ऐसा होता है, लेकिन किसी और दुनिया में, किसी दूसरी फिल्म इंडस्ट्री में। आज की सच्चाई ये है कि ऎसी कोई निशानदेही नहीं है कि जब आपके पास पॉवर हो तो आप उसका गलत इस्तेमाल नहीं करते। हम सबको इसकी शुरुआत करनी होगी, हमें औरतों को बोलने देना होगा, हमें उन्हें कॉंफिडेंट और सहज महसूस करवाना होगा अगर वो इतने सालों बाद सामने आ रही हैं। हमें गलत जानकारियों को धमाकेदार नहीं बनाना है, हमें थोड़ी समझदारी दिखानी होगी, ये कोई सनसनीखेज़ चीज़ नहीं है, ये एक ऐसा मुद्दा है जिसका प्रभाव आने वाली पीढ़ी पर पड़ सकता है क्यूंकि मुझे लगता है कि अगर हमें फिल्म इंडस्ट्री के रूप में एक खलनायक के तरह सामने आना होगा। सोशल मडिया के ज़रिये, ख़बरों के ज़रिये महिलाएं अपनी बात कहने में सशक्त हुई हैं। हालांकि इस बात को सामने आने में बहुत वक़्त लग गया। और हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि सभी औरतें सामने आकर सिर्फ सच बोल रही हैं, ये ज़रूरी है। उसके बाद आगे क्या होता है ये तो वक़्त ही बताएगा लेकिन शुरुआत में हमारा ये कहना कि ये झूठ है, ये हमारी बेवकूफी होगा। हमें यकीन करना होगा कि ये सच्चाई है।

अनुपमा: लेकिन परिणीति  क्या आपको लगता है कि इंडस्ट्री की महिलाएं खासतौर पर चर्चित अभिनेत्रियां, वो लोग एक साथ आएंगी जैसे कि मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में हुआ था और उन्होंने औरतों को एक साथ लाने का कम किया। क्या आपको लगता है ऐसा होगा?

परिणीति :  आपको पता है ये बहुत अजीब बात है कि आप मुझसे आज ये सवाल कर रही हैं। क्योंकि मुझे आज ही कुछ लड़कियों के मेसेजेज़ आये, मैं उनका नाम नहीं लूँगी, लेकिन हम कुछ करना चाहते हैं, कुछ बड़ा करना चाहते हैं, अभी उसके बारे में बताना बहुत जल्दबाजी होगा मगर हम करेंगे। ज़ाहिर है कि ऐसे मुद्दे पर चुप रहना काफी चौंकाता है, इंडस्ट्री के अन्दर भी। हम में से कुछ लोग इसे स्वीकार कर रहे हैं और कुछ लोग अभी भी तर्क और तथ्य ढूँढने की कोशिश कर रहे हैं, मैं उन्हें नहीं गलत नहीं ठहराउंगी । मैं समझ सकती हूँ कि वो अपना वक़्त ले रहे हैं ये समझने में कि उन्हें किसके साथ खड़ा होना है। क्यूंकि जो नाम सामने आये हैं वो सब ऐसे हैं जिनके साथ लोगों का किसी ना किसी तरह से जुड़ाव रहा है, तो हो सकता है उनके लिए इसे तुरंत स्वीकार कर पाना मुश्किल होगा। अभी इस मूव्मेंट को 'आधिकारिक' रूप से शुरू हुए 5-6 दिन दिन ही हुए हैं। लेकिन बाकी ढेर सारे लोगों की तरह मैंने भी बात करना शुरू कर दी है, आज ही से। मैंने इस बात को भी स्वीकार कर लिया है कि देखो इसमें वक़्त लग रहा है लेकिन हमें कुछ करना होगा मुझे लगता है ये नज़ारा बहुत जल्दी बदलेगा, और मैं बहुत खुश हूँ कि अब हम में से कुछ लोग सचमुच निडर हो गए हैं जिन्हें इस बात का ख़ौफ़ नहीं है कि किसके साथ उनके सम्बंध हैं और उसका क्या असर होगा। मुझे लगता है कि सिर्फ एक यही रास्ता है क्योंकि हमारी परेशानी उतनी बड़ी नहीं है। और भी पीड़ित हैं जिन्होंने इससे कहीं ज़्यादा झेला है, हमें इस बात की फ़िक्र नहीं करना चाहिए कि इनके खिलाफ आवाज़ उठाकर हमारे करियर पर हमारे संबंधों पर क्या असर पड़ेगा, इस बदलाव के लिए ये बहुत छोटी कीमत है। इस वक़्त हमें सिर्फ इन लड़कियों के लिए एक साथ आना है।

अनुपमा: पर क्या आपको लोगों के लिए ये थोड़ा अजीब नहीं है। आप अपनी फिल्म का प्रमोशन कर रहे हैं और अचानक से ये पूरा मुद्दा इस तरह सामने आ रहा है।

परिणीति: हाँ, लेकिन हम इसे ऐसे नहीं ले रहे हैं। हम समझ रहे हैं कि अब ये हर किसी की ज़िंदगी का हिस्सा है। वक़्त की बात है कि हम दोनों अपनी फिल्म की वजह से मीडिया के सामने हैं। लेकिन अगर ऐसा नहीं भी होता तब भी हम इस बारे में ज़रूर बात करते, जैसे मैंने सबसे पहला ट्वीट किया था। मुझे लगता है उससे साफ़ हो जाता है कि मेरा नज़रिया क्या है।

अर्जुन: हाँ जैसे फरहान ने किया, उसने पोस्ट के ज़रिये अपनी बात खुलकर कही। देखिये ये बहुत दुर्भाग्यवश है, इसे कभी होना ही नहीं चाहिए था, हमारे लिए व्यक्तिगत तौर पर बात करते हुए भी वक़्त को तो भूल ही जाइए, लेकिन जैसा कि आपने कहा कि होना ज़रूरी था। बहुत वक़्त लग गया, ये होना ही था। अगर इसके ज़रिये कुछ अच्छा या कुछ बुरा बाहर आ रहा है तो आने दें। अगर मैं और परिणीति यहाँ युवा अभिनेता के तौर पर बैठे हैं तो हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम उन लोगों को ये बात समझा पाएं और यकीन दिला पाएं कि सच बोलकर वो इसके परिणामों के बारे में इतना परेशान ना हो, तो मुझे ख़ुशी होगी कि हम यहाँ हैं और अपनी फिल्म का प्रमोशन कर रहे हैं। हो सकता है वो सिर्फ दो लोग हों जिन्हें इसके परिणामों की फ़िक्र ना हो। ये हमारे बारे में नहीं है ये बहुत गलत है अनुपमा। मेरी बहनें इस पेशे में काम कर रही हैं मुझे हमेशा से फिल्म इंडस्ट्री पर बहुत फक्र रहा है। मैंने यहाँ बराबरी होने की बात की शुरुआत की थी और मैंने वो बदलाव देखा भी है। एक बहुत बड़ा और सकारात्मक बदलाव हुआ है। अब एक क़दम आगे जाने का मतलब है उन कमियों को दस क़दम पीछे करना। मैंने यहाँ पर औरतों को सहजता से काम करते देखा है। मैंने देखा है कि औरतें इस माहौल में काम पर आने के लिए सहज महसूस कर रही हैं, जब प्रमोशन कर रहे हैं शूट कर रहे हैं, तो महिला असिस्टेंट डायरेक्टर्स हैं, इतनी महिलाएं हैं। इतने सालों में हम ने इन सब चीजों को बहुत बेहतर किया है, हम इसे साफ़ करने में सफल रहे हैं और अब… देश के किसी हिस्से में कोई पिता बैठकर ये सोच रहा होगा कि यार मैं अपनी बेटी को इस इंडस्ट्री में नहीं जाने दे सकता। ये चीज़ें मुझे तोड़ देती हैं क्योंकि कितने ऐसे हुनरमंद अभिनेता जो हमें मिल सकते थे, अब उनके पास ठोस वजह है इस शहर में ना आने की।

परिणीति: मेरे करियर की शुरुआत में भी ये हुआ, जैसे कि मेरे मम्मी-पापा बिलकुल ही नॉन-फिल्मी हैं, वो कभी बॉम्बे में नहीं रहे, हमारा बॉम्बे से कभी कोई ताल्लुक नहीं रहा तो मेरे पिता का पहला सवाल यही था, क्या तुम चाहती हो कि तुम्हारी माँ तुम्हारे साथ बॉम्बे शिफ्ट हो और हर वक़्त तुम्हारे इर्द-गिर्द रहें? तो मैंने कहा नहीं! ऐसी कोई ज़रुरत नहीं है। आप ये कैसे सोच सकते हैं, मेरा निर्देशक युवा है, जिन लोगों के साथ मैं काम करती हूँ वो भी युवा हैं, वो बहुत मस्त लोग हैं। ये सब चीज़ें 20 साल पहले होती थी। परेशान न हो, अब वक़्त बदल गया है। मैंने ही उन्हें समझाया, फिल्म इंडस्ट्री से बाहर का होने के नाते वो बहुत फिक्रमंद थे। जो बात मुझे सबसे ज़्यादा चौंकाती है वो ये कि इनमें से कुछ के साथ मैंने फिल्में की हैं। ये वो लोग हैं जिनके साथ मैं काम कर चुकी हूँ। मेरे लिए ये बेहद अजीब बात है क्योंकि ये बिलकुल इस तरह है कि मुझे नहीं पता था आप कौन हैं, मैंने आपको बिल्कुल ही अलग रूप में देखा था, मैं आपके घर खाने पर आ चुकी हूँ आपके साथ वक़्त बिताया है, मैंने आपसे अपनी निजी ज़िंदगी, अपने सपनों के बारे में बात की है और आप बिल्कुल ही अलग शख्स हैं, आप एक मुजरिम की तरह सामने आ रहे हैं, तो ये बहुत डरावना है। मुझे नहीं पता आने वाले दिनों में और किसके नाम सामने आएंगे मैं किन लोगों पर भरोसा कर सकती हूँ। इसलिए मैं उन औरतों को दाद देती हूँ जिन्होंने सामने आकर बात करने की हिम्मत जुटायी। मैं इसकी सराहना करती हूँ कि वो ये सब चोट खाने के, ज़ख़्मी होने के बावजूद कर रही हैं, ये बहुत बड़ी बात है। तो हम सब लोग जो इस दौर से नहीं गुज़रे हैं, हम इसे खुद तक सीमित नहीं कर सकते। हम इस बारे में बात नहीं कर सकते कि कौन बात नहीं कर रहा है? क्यूँ मर्दों के मुकाबले औरतें ज्यादा बात कर रही हैं, आदि… हमें सिर्फ उन औरतों पर ध्यान देना है जो बोल रही हैं।   

अनुपमा: मुझे सचमुच लगता है कि अच्छी चीज़ें होंगी।

परिणीती: जी, ये एक ज्यादा सुरक्षित जगह बन जाएगी। हो सकता है कि आदमी लोग और ज़्यादा अच्छा बर्ताव करने लगें।

अर्जुन: जैसे आज इमरान हाशमी ने एक ट्वीट किया जिसमें लिखा था कि "अब से वो जो भी फिल्म करेंगे उसमें इस बात का ख़ास ध्यान रखेंगे कि उस फिल्म के कॉन्ट्रैक्ट में एक बिंदु ये भी हो कि अगर कोई महिला किसी आदमी से असहज महसूस कर रही है तो वो तुरंत उसकी शिकायत दर्ज कर सकती है।" मुझे लगता है ये बुनियादी चीज़ें है जिनकी शुरुआत हमें करना चाहिए, जितना जल्दी मुमकिन हो उतनी जल्दी।

अनुपमा: अच्छा अब अपनी फिल्म के बारे में बताइए। लोग कह रहे हैं कि नमस्ते इंग्लैंड नमस्ते लंदन का सिक्वल है। क्या ये बात सच है?

अर्जुन: नहीं, ऐसा नहीं है। ये मुमकिन नहीं है। बात सिर्फ इतनी है कि दोनों फिल्में एक ही फ़्रेंचाइज़ी की हैं। दोनों की दुनिया एक जैसी है, वैसा ही टोन है, वही भावनाएं हैं जो नमस्ते लंदन को बनाते वक़्त लगी थी। तो जब आपने फिल्म देखी थी, मुझे नहीं पता आपको नमस्ते लंदन कितनी पसंद आयी, मुझे तो बहुत पसंद आयी थी। मेरे लिए बहुत प्यारी सी मीठी सी फिल्म थी, जोकि उस वक़्त बहुत देसी थी, जिसमें बहुत ही नया टकराव था लेकिन उसे एक बहुत ही भारतीय परिवार में पिरोया गया था, इसमें थोड़ा सा देसी, थोड़ा विदेशी का मिलाप था। तो उन सभी भावनाओं का, उन सभी चीज़ों का इस्तेमाल किया गया है एक नए टकराव, नई कहानी को, नए किरदारों को दिखाने के लिए। निर्देशक भी पहली वाली फिल्म से ही हैं।

अनुपमा: तो एक तरह से ये पूरा माहौल एक जैसा है?

परिणीती: हाँ, दोनों फिल्मों की दुनिया वही है। ये एक सिक्वल नहीं हो सकती क्योंकि ये उसके आगे की कहानी नहीं है; और लोगों का कन्फ़्यूज़ होना लाज़मी है क्योंकि वो शब्द एक जैसे हैं, नमस्ते भी है, पंजाब और लंदन भी वही हैं और फिल्म के निर्देशक भी वही हैं, तो मुझे लगता है कि यही वजह है कि हम उस नाम से मिलने वाली हर अच्छी चीज़ का इस्तेमाल कर सकते हैं, क्योंकि ये उसी निर्देशक की फिल्म है। तो मुझे लगता है कि जब लोग फिल्म देखेंगे तो उन्हें समझ आ जाएगा कि दोनों फिल्में एक जैसी नहीं हैं।

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