रेस 3 फिल्म रिव्यू

सलमान खान, बॉबी देओल, जैकलीन फर्नांडीज़ जैसे सितारों से सजी रेमो डिसूज़ा के निर्देशन में बनी रेस फ्रेचाइज़ी की तीसरी किश्त में, कहानी को सुपरस्टार सलमान खान की वेदी पर बलि चढ़ा दिया गया है।
रेस 3 फिल्म रिव्यू

निर्देशक: रेमो डिसूज़ा

कलाकार: सलमान खान, अनिल कपूर, जैकलीन फर्नांडीज़, बॉबी देओल, डेजी शाह, साकिब सलीम, शरत सक्सेना, फ्रेडी दारूवाला और मिलिंद गुणाजी

रेस सीरीज़ की फिल्म बनाने की रेसिपी क्या है? सबसे पहले ढेर सारे अच्छे दिखने वाले बुरे लोग लीजिए। ये ऐसे लोग होने चाहिए जो ज़रूरत से ज्यादा ही स्टाइलिश लगें, किसी भी तरह के रस्म रिवाज़ मानने में इनकी ज़रा भी दिलचस्पी न हो, भले ही बात उनके अपने परिवार की ही क्यों न हो। तो रेस सीरीज की पहली फिल्म में भाई ही भाई के खून का प्यासा हो जाता है और दूसरी में भाई और बहन हत्यारे धोखेबाज बन जाते हैं। पहली रेस में दोनों भाइयों का एक ही लड़की से अफेययर होता जिसने मौका बनाया था एक घटिया से डॉयलॉग का, याद है?, "क्या ज़माना आ गया- शादी छोटे भाई के साथ और सुहाग रात बड़े भाई के साथ।" रेस सीरीज़ की फिल्मों में नायक नहीं होते। ये सारे अलीबाबा के चालीस चोर होते हैं। इनके लिए कमीनापन एक तरह का तमगा है। इसके अलावा आपको चाहिए होती हैं सैकड़ों हाई स्पीड हाईएंड कारें, आंखों को चकाचौंध करने वाली विदेशी लोकेशंस, जेम्स बॉन्ड स्टाइल के गैजेट्स, चटपटी डॉयलॉगबाज़ी और कम से कम दो किलर डांस नंबर्स के साथ आधा दर्जन बेवकूफी भरे ऐसे ट्विस्ट्स जो आपको चौंकाते नहीं बल्कि भरमाते हैं।

रेस 3 में सैकड़ो की गिनती से भी ज़्यादा कारें हैं, लोकेशंस हैं बस, कुछ नहीं हैं तो खासतौर से इस सीरीज का ट्रेडमार्क कमीनापन। सलमान खान की इस फ्रेचाइज़ी में एंट्री ने सब कुछ संस्कारी कर दिया है। वह यहां ऑक्सफोर्ड से पढ़कर आए सिकंदर के रोल में हैं जो हर दूसरे सीन में परिवार, इंसानियत, मोहब्बत की बातें करता है। पैसे और पॉवर को उसे कोई लोभ नहीं। भगवान बुद्ध की तरह उसे भी कैवल्य प्राप्त हो चुका है। वह इतना सीधा इंसान है कि जो लोग उसके खिलाफ़ साज़िशें रचते हैं, वह उनको भी माफ कर देता है। आधा घंटा फिल्म देखने के साथ मुझे सैफ अली खान के किरदार रणवीर सिंह की कमी खलने लगी। याद है उनके वो करीने से सिले गए सूट्स और हर उस बंदे की जान ले लेने का जुनून जो उसका रास्ता गलती से भी काट जाए। रेस 2 में उनका किरदार शैतानों के आका की भी रूह कंपा सकता है। ये वो फ़्रेंचाइज़ी है जिसमें कोई तर्क नहीं होता, दिमाग का कोई काम नहीं होता और सारे किरदार पूरी बेहयाई के साथ मज़े करते हैं।  

लेकिन, साथ ही ये भी नहीं भूलना चाहिए कि ये सीरीज़ सस्पेंस सम्राट कहे जाने वाले भाइयों अब्बास-मस्तान के दिमाग की उपज थी। यहां उनके जूतों में पैर डालने की कोशिश की है रेमा डिसूजा ने। उन्होंने और लेखक शिराज़ अहमद ने मिलकर अपने सुपरस्टार सलमान खान के लिए ये फिल्म लिखी नहीं डिज़ाइन की है। करीब करीब हर फ्रेम में सलमान ही सलमान है, उनके पास हर समस्या का तुरत निदान है। इतना कि ट्रैफिक की समस्या है तो भाई अपना हवा में उड़ने वाला सूट निकाल लेता है और फटाफट वहां पहुंच जाता है जहां उनकी ज़रूरत है। कोई बता सकता है कहां मिलते हैं ये वाले फ्लाइंग सूट्स? मुझे भी चाहिए।

सलमान के अलावा बाकी सारे सितारे उनके सामने ठीक से निकल भी नहीं पाते हैं,  चमकना तो बाद की बात है। नई डेंटिंग पेंटिंग के साथ लौटे बॉबी देओल भी काफी कोशिश करते हैं कि भाई के आसपास तो पहुंचे, बेचारे ने शर्ट तक उतार दी इस फिल्म में। लेकिन, वह कन्फ्यूज ज्यादा दिखते है, मानो कि तय नहीं कर पा रहे कि आखिर वह हैं किस टीम में। डेजी शाह के साथ उनके गाने में आपको थोड़ी हंसी भी आ सकती है – डेजी लकड़ी के एक फ्रेम में बंधे कपड़ों के सहारे हवा में डांस कर रही हैं, उनकी पोजीशन ऐसी है कि सिर नीचे और पैर ऊपर, और बॉबी देओल उनके चेहरे को ऐसे देख रहे हैं जैसे कि भई अब ये क्या पहेली सॉल्व करनी है, चेहरे पर लाख कोशिश करके भी रोमांस वाली फीलिंग कहीं दिखती नहीं है। डेजी शाह की बात करें तो वो 'अवर बिज़नेस इज अवर बिज़नेस, नन ऑफ योर बिज़नेस' वाले फालतू के डॉयलॉग के अलावा उनके हिस्से में कुछ ज्यादा है नहीं। दुख होता है साक़िब सलीम को देखकर। आमतौर पर वह फिल्म में होते हैं तो कुछ अच्छा देखने को मिलेगा, इसका भरोसा रहता है लेकिन यहां वह भी बस मुंह बनाने और हर डॉयलॉग के आखिर में 'ब्रो' जोड़ देने के अलावा और कुछ खास करते दिखते नहीं। जैकलीन फर्नांडीज़ को फिल्म की खूबसूरती बढ़ाने के लिए रखा गया और अपना काम उन्होंने सौ फीसदी कर भी दिया। पोल डांसिंग वाले उनके गाने के दृश्य याद रह जाते हैं तो इसलिए कि मन में देर तक ये ख्याल चलता रहा कि आखिर इसके लिए इतनी मेहनत करने की ताक़त कहां से आती होगी।

फिल्म में अगर कोई सलमान नाम की सुनामी से खुद को बेदाग बचा ले गया तो वह हैं शानदार तरीके से परदे पर आने वाले अनिल कपूर। उन्हें देखकर लगता है कि फिल्म का असली मज़ा उन्होंने ही लिया है, हालांकि पहले की दो फिल्मों में उन्हें भ्रष्ट इंस्पेक्टर आरडी के तौर देखना ज़्यादा अच्छा एहसास रहा। सीरीज की दूसरी फिल्म में वह अपनी बुद्धू असिस्टेंट की तरफ देखकर कहते हैं, "तुमने मुझे टर्की का ठरकी समझा है?" लेकिन, इस फिल्म में उनके पास वैसा कुछ मसालेदार करने का मौका था नहीं। इलाहाबाद के हांडिया में बोली जाने वाली अवधी भी डॉयलॉग राइटर उन्हें ठीक से समझा नहीं पाए।

रेस 3 का म्यूज़िक डिपार्टमेंट भी कमज़ोर है। ना कोई ढंग का डांस नंबर और न ही कोई दिल को छू जाने वाली मेलोडी, हां, फिल्म का हार्डवेयर काफी मजबूत है- कहां जाए तो फिल्म एक तरह से कारों की नुमाइश है। मुझे गाड़ियों के बारे में ज़्यादा तो नहीं पता लेकिन लैम्बोरिगिनी और रॉल्स रॉयस की कतारें देखना भला किसी अच्छा नहीं लगता। एक्शन डायरेक्टर्स अनल अरसू और थॉमस स्ट्रूथर्स ने कुछ ग़ज़ब दिखने वाले स्टंट्स और कार चेंज फिल्म में डिज़ाइन किए हैं। डायरेक्टर रेमो को कारों, हेलीकॉप्टरों, आसमान छूती इमारतों, शानदार दिखने वाले कमरों और बार से बहुत प्यार दिखता है लेकिन काश कि इतने सारे प्यार में से थोड़ा सा वह कहानी को भी दे पाते। सुपरस्टार सलमान खान की वेदी पर उन्होंने कहानी को बलि चढ़ा दिया है।

लेकिन, सुल्तान और बजरंगी भाईजान ने ये साबित किया है कि फिल्म की स्क्रिप्ट में जान हो तो सलमान इसे और ऊपर ले जा सकते हैं और डायरेक्टर काबिल हो तो वह सलमान की परदे से बड़ी शख्सीयत को ढंग से इस्तेमाल करने का रास्ता भी निकाल सकता है। रेमो ने इसकी बजाय उन ट्रिक्स का सहारा लिया है जो सलमान के फैंस पहले तमाम मर्तबा देख चुके हैं, जैसे कि क्लाइमेक्स में उनका अपने बदन से शर्ट को चिथड़े करके अलग करना या दर्शकों की तरफ देखकर आंख मारना। जब सलमान मिसाइल दागने को तैयार होते हैं तो रेमो ने सलमान के डौलों का भी क्लोज़ अप लिया है!

फिल्म में एक जगह, सिकंदर बोलता है, "फैमिली और फैमिली के प्रति लॉयल्टी से बढ़कर कुछ नहीं होता।" यूं लगा कि कोई दूसरी फिल्म देखने तो नहीं आ गए। ये तो रेस नहीं है। ये तो वही है जैसा कि सलमान ने इस फिल्म के बारे में कथित तौर से कहा भी है कि ये "हम आपके हैं कौन और धूम का मिक्सचर है।" अब आप अंदाज़ा लगाए कि इसका मतलब क्या होता है? मेरी तरफ से फिल्म को दो स्टार।

Adapted from English by Pankaj Shukla, consulting editor

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