रिव्यू : करनजीत कौर – द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ सनी लिओनी

सनी लिओनी अपने मन की बात का प्रचार करने पर अब भी अड़ी हुई है। और, ये काम हिंदी फिल्मों, टेबलॉयड्स और इंटरव्यूज के जरिए बार बार कर रही हैं। इसीलिए करनजीत कौर सीरीज बस एक सतही तरीके से बनाई गई पीआर सीरीज बनकर रह गई है।
रिव्यू : करनजीत कौर – द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ सनी लिओनी

स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म : ज़ी5

निर्देशक: आदित्य दत्त

कलाकार: सनी लिओनी, करनवीर लांबा, रायसा सौजानी, राज अर्जुन, बिजय जे आनंद, ग्रुषा कपूर

करनजीत कौर के 10 एपीसोड्स में 37 साल की पूर्व एडल्ट स्टार सनी लिओनी ने 18 साल की सनी लिओनी, 21 साल की सनी लिओनी, 27 साल की सनी लिओनी और 35 साल की सनी लिओनी के किरदार निभाए हैं। हां, संयोग से एक 12 साल वाली सनी लिओनी भी है, रायसा सौजानी नाम की एक लड़की ने अप्रपासी दकियानूसी सिख परिवार की सीधी चोटी बनाने वाली, पैरों पर वैक्सिन्ग न कराने वाली और आईब्रो तक सेट न कराने वाली सनी लिओनी का रोल किया है। जैसा कुछ कुछ नशे में होता है वैसे ही इस सीरीज की कहानी भी इधर उधर लुढ़कती रहती है, कभी 1994 के कनाडा में, कभी 1999 के लॉस एंजिलिस में, 2002 के लॉस एंजिलिस में, 2016 के मुंबई में और यहां तक कि 1981 के कनाडा में भी। कभी कभी कहानी एकदम से ही किसी खास मौके की बात करने लगती है और हमें छोड़ देती है केबीसी खेलने के लिए कि पता लगाओ ये सीन किस  साल की बात कर रहा है!और हमारे ऑप्शन्स होते हैं सनी के कपड़े देखकर उसकी उम्र के हिसाब से इसका पता लगाना, उसके ड्यूड बोलने की फ्रीक्वेंसी से साल का पता लगाना, उसके पिता की दाढ़ी के बाल कितने घने हैं या फिर फ्रेम की कलर टोन कैसी है, उससे पता लगाना।

एक एपीसोड में जो कुछ परदे पर चल रहा होता है वहां से कहानी सीधे 2002 में सनी लिओनी के ब्रेक अप में गोता लगा जाती है और फिर वहां से सीधी निकलती है जाकर 2008 (एक और साल जिसके बारे में मैं ऊपर बताना भूल गया) के एडल्ट वीडियो अवार्ड्स इवेंट में जहां उसे अपने पति डैनियल से पहली नज़र वाला प्यार हो जाता है और फिर वहां से सीधे वापस फिर 2002 में गोता और वह भी एक स्टाइलिश सी पूल पार्टी में (ये सारी पूल पार्टीज मुझे लॉस एंजिलिस के किसी एक खास बंगले में ही होती दिखती है जिसे देखते ही न जाने क्यों मुझे नवी मुंबई के घाट याद आ जाते हैं), पेंटहाउस पेट ऑफ द ईयर अवार्ड जीतने के बाद इसी पार्टी में सनी को पहली बार लेस्बियन रिश्ते का स्वाद लेते भी दिखाया गया है।

समझ में ये आता है कि सीरीज बनाने वालों के पास कहने को इतना कुछ रहा होगा कि वे समझ ही नहीं पाए कि शुरू कहां से करें लेकिन सनी लिओनी की इस तड़क भड़क वाली कहानी को इस तरह के एपीसोड्स में बांटना (शीर्षक देखें – द फर्स्ट ड्रेस, फ्रॉम कनाडा टू एलए, वर्जिन मैरी, द बर्थ ऑफ सनी लिओनी, करनजीत रिविएल्स द ट्रूथ, हाउ करनजीत मेट हर हसबैंड, ह्यूमिलिएशन फॉर फैमिली, द ओनली रिग्रेट) बुद्धिमानी का फैसला नहीं मालूम देता। इससे न सिर्फ ऊब होती है बल्कि ये कहानी कहने का ये एक बहुत ही निचले स्तर का तरीका भी बन जाता है, जिस तरह से फ्लैशबैक में फ्लैशबैक और उसके भीतर दो और फ्लैशबैक हैं, ऐसा लगता है कि आदित्य दत्त का मुकाबला नीरज पांडे की अय्यारी से चल रहा है, जिन्हें भी अब जाकर समझ आया है कि कमर्शियल सिनेमा में कहानी का कहने का तरीका सीधा और समझ में आने वाला होना चाहिए।

कोई 200 मिनट की घिसट घिसटकर आगे बढ़ने वाली इस आत्मकथा टाइप की वेब सीरीज में बताने को कुछ नहीं है, ये कुछ बताती है तो बस इतना कि सनी लिओनी के लिए पैसा ही सब कुछ है और उन्हें अपने माता पिता को दुख पहुंचाने का अफसोस है। हिंदी सिनेमा में सनी लिओनी की छवि अब तक एक ऐसे परदेसी सितारे की रही है जिसने ज़िंदगी को अपनी शर्तो पर जिया, लेकिन ये सीरीज उन्हें एक छिछली बेटी, एक अजीब सी बहन, एक बहकी सी वयस्क और एक ऐसे इंसान के तौर पर पेश करती है जिस पर भरोसा करना मुश्किल है। शो ये बताने की भी कोशिश करता है कि किसी का बच्चा अगर पॉर्न स्टार बन जाए तो बस हिंदुस्तानी मां-बाप ही होंगे ऐसे जिन्हें इस पर दुख होगा। इसीलिए गोरी चमड़े वाले किरदार यहां कभी जातिवादी, कभी हटे हुए से तो कभी बिना किसी बात के डरे हुए लोग नज़र आते हैं। इनके संवाद इसी तरह गढ़े गए हैं और तो और लिओनी के पेंट हाउस में छपे दो पन्ने के फोटो पर उसके एक्स बेस्ट फ्रेंड के पति को हस्तमैथुन करते हुए दिखाकर भी ना जाने मेकर्स क्या साबित करना चाह रहे थे। ये सारे किरदार करने वाले किरदार भी आदित्य ने न जाने किस तहखाने से ढूंढकर निकाले हैं।

ये सारे किरदार करीब करीब वैसा ही बर्ताव करते दिखते हैं जैसी कि आमतौर पर अमेरिकियों को लेकर एक आम भारतीय की धारणा रहती है। कहा जाए तो इन्होंने अपना काम उन पोर्न सीरीज के कलाकारों से भी घटिया किया है, जिनमें एक आंटी होती है, एक पिज्जा ब्वॉय होता है। दोनों मिलते हैं और परदे पर बहुत नैचुरल लगते हैं। तो इस तरह से आदित्य दत्त को तो मेथल फिल्म मेकर का तमगा मिलना चाहिए ये सीरीज बनाने के लिए।

सनी लिओनी का हिंदुस्तानी मीडिया में एक समय ऐसा जलवा भी रहा है कि बड़े बड़े चैनलों के संपादक उनका इंटरव्यू लेने के लिए लार टपकाते देखे गए हैं। ऐसा ही एक इंटरव्यू किया था 2016 में पत्रकार भूपेंद्र चौबे ने। करनजीत कौर सीरीज इसी इंटरव्यू का ड्रामाटाइजेशन है। चौबे का हर सवाल सनी लिओनी को उनके जीवन के अलग अलग चरणों में जाने का मौका देता है। उनके पिता बेरोज़गार हैं। उनकी मां शराबी हैं। भाई का साथ। हर चीज़ पर फैसला सुनाने को तैयार समाज। दौलत की हवस। और, सीरीज खत्म होते होते समझ नहीं आता कि वो महात्वाकांक्षी थी, शोषित थी, बाग़ी थी, आज़ाद थी या लालची थी। सीक्रेट सुपरस्टार में निर्दयी बाप का किरदार करने वाले राज अर्जुन यहां शोशेबाज़ एंकर के रोल में हैं। चेहरे पर भाव ऐसे आते हैं कि पता नहीं चलता कब्ज़ से परेशान हैं या फिर किसी का खून करने के फेर में, कुछ कुछ अक्स के मनोज बाजपेयी जैसे। कहानी के बीच बीच में कंट्रोल रूम में बैठे प्रोड्यूसर के शॉट्स भी आते रहते हैं जिसे हर बात पर अपना ज्ञान देना है। "हिट विकेट हो जाआगो, धोनी बनो", चौबे के ईयरपीस में ज्ञान उड़ेला जाता है। और, धोनी जिस फॉर्म में इन दिनों चल रहे हैं, उससे समझ आता है कि ये ऐक्टर सिर्फ आदेश ही मान रहा था।

सीरीज में लिओनी और उसके भाई सनी (जी हां, अपना स्क्रीन नेम चुनने की उधेड़ बुन में खोई लिओनी के मोबाइल पर भाई का यही नाम फ्लैश हुआ और करनजीत ने यही अपना नाम रख लिया) के अलावा सीरीज में किसी दूसरे शख्स का असली नाम इस्तेमाल नहीं किया गया है। भूपेंद्र चौबे को अनुपम चौबे बना दिया है। हॉवर्ड स्टर्न बन गए हैं रिचर्ड स्टोन और सबसे अहम किरदार 50 सेंट का नाम बदलकर हो गया है 2 पेंस, अच्छा हुआ दो रुपये नहीं कर दिया जैसाकि एक बार किसी क्रिटिक ने ट्वीट भी किया था।

मुझे अच्छा ही लगता अगर मैं इस शो के बारे में कोई ठोस बात बता पाता क्योंकि ये शो ऐसा है जिसे अगर कायदे से बनाया गया होता तो ये हाल के बरसों की एक बड़ी सांस्कृतिक टिप्पणी हो सकती थी। लेकिन, सनी लिओनी अपने मन की बात का प्रचार करने पर अब भी अड़ी हुई है। और, ये काम हिंदी फिल्मों, टेबलॉयड्स और इंटरव्यूज के जरिए बार बार कर रही हैं। और, इसीलिए करनजीत कौर सीरीज बस एक घटिया तरीके से बनाई गई पीआर सीरीज बनकर रह गई है। इस कहानी में ऐसा कुछ नहीं है जो पहले से लोगों को पता न हो। बहुत सलीके से कहें तो भी ये बस एक डी ग्रेड घटिया एंटरनेटमेंट से ज़्यादा कुछ नहीं है।

चलते चलते, एक खास सीन का ज़िक्र करना ज़रूर चाहूंगा। जब लिओनी पहली बार डैनियल से नाइटक्लब में मिलती है, पूरा माहौल रूमानी हो जाता है, कैमरा उसके दमकते चेहरे पर पर है और एक न्यूड मॉडल अपने उरोजों की नुमाइश करती हुई पास खड़े बारटेंडर से बतिया रही है। ये सीन आपके दिमाग में कैद होकर रह जाता है, वजह? वजह यही है कि ये सीन नग्नता और कामुकता के भावों को एडल्ट एंटरटेनमेंट में बहुत सहज तरीके से पेश करता है। और, इसी एक सीन के सहारे हम ये भी समझ पाते हैं कि इसके मेकर्स ने उसी घिसी पिटी तरीके को अपनी कहानी कहने का सहारा बनाया जिसकी भंजना करने के लिए ये सीरीज बनाने की कोशिश की गई है। ये एक सीन पूरी सीरीज की बानगी है और उस कोशिश की भी जिसने इंटरनेट पर मौजूद रही एक ठीक ठाक परंपरा को मारने में अपने हाथ रंगकर लाल कर लिए।

Adapted from English by Pankaj Shukla, Consulting Editor

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