यमला पगला दीवाना फिर से मुवी रिव्यू

नवनियत सिंह की ये फिल्म एक कॉमेडी, एक आयुर्वेदिक कमर्शियल, राष्ट्रीय एकता की एक गुहार, एक लव स्टोरी और नैतिक शिक्षा का एक पाठ , सब कुछ एक साथ बनने की कोशिश करती है। धर्मेंद्र की शख्सियत की चमक अब भी कायम है, लेकिन वह और उनके बेटे सनी देओल का मशहूर ‘ढाई किलो का हाथ’ भी इस बेतुकी फिल्म की मदद नहीं कर पाते हैं।
यमला पगला दीवाना फिर से मुवी रिव्यू

निर्देशक – नवनियत सिंह

कलाकार – धर्मेंद्र, सनी देओल, बॉबी देओल, कृति खरबंदा

यमला पगला दीवाना फिर से, यानी इस फ़्रेंचाइज़ी की ये तीसरी फिल्म एक तरह से आयुर्वेद के कसीदे पढ़ने की कहानी है। जी हाँ, सही समझा आपने। सनी देओल वैद्य पूरन सिंह के रोल में है जिसके पास हर बीमारी का इलाज है, एक आदिकालीन वानस्पतिक औषधि – वज्र कवच। ये ऐसी चमत्कारी दवा है कि दवाएं बनाने वाली तमाम बड़ी कंपनियां इसे खरीदना चाहती हैं। पूरन करोड़ों के इन प्रस्तावों को अस्वीकार कर देता है। इसके बाद कहानी में चोरी होती है, कोर्ट कचहरी होती है और एक मौके पर तो पूरन और एक वकील अदालत में हल्दी के चमत्कारिक गुणों पर चीखते दिखाई देते हैं। अगर मैं आपको पिछले हफ्ते से थोड़ा ज़्यादा उम्रदराज लगूं तो ये इसलिए है क्योंकि फिल्म के खुशी खुशी खत्म होने में लगे ढाई घंटे एक उम्र गुज़ारने जैसे थे। और, तब तक ये हालत हो गई कि लगा कि वज्र कवच की जरूरत अब मुझे है।

सच कहूँ तो 'यमला पगला दीवाना फिर से' देखते हुए मुझे बहुत दुख हुआ। नवनियत सिंह निर्देशित ये फिल्म मुख्य रूप से दो चीज़ों पर टिकी है – एक तो देओल परिवार के लिए हमारे दिल में मौजूद प्यार औऱ दूसरा धर्मेंद्र, जिनका नाम मैं धरम जी के तौर पर ही लिख सकती हूं, की फिल्में देखते हुए बनाई गईं तमाम सारी अच्छी यादें। फिल्म का शीर्षक भी उनके एक बहुत लोकप्रिय गाने से लिया गया है। और, ये फिल्म खत्म होती है एक आइटम नंबर के साथ जिसमें वह, सलमान खान, रेखा और सोनाक्षी सिन्हा उनके ही एक गाने रफ्ता रफ्ता पर बुनी गई मेडले पर नाच रहे हैं। रफ्ता रफ्ता गाना धरम जी और रेखा पर 1973 में आई फिल्म कहानी किस्मत में फिल्माया गया था।

धरम जी की शख्सियत की चमक अब भी कायम है लेकिन वह और उनके बेटे सनी देओल का मशहूर 'ढाई किलो का हाथ' भी इस बेतुकी फिल्म की मदद नहीं कर पाते हैं। यमगा पगला दीवाना फिर से एक कॉमेडी, एक आयुर्वेदिक कमर्शियल, राष्ट्रीय एकता की एक गुहार – खास तौर से गुजरातियों और पंजाबियों के बीच, एक लव स्टोरी और नैतिक शिक्षा का एक पाठ सब कुछ एक साथ बनने की कोशिश करती है।

फिल्म का हास्य बेहद निचले दरजे का है। लगातार चलने वाला एक मज़ाक ये भी है कि धरम जी इतने आकर्षक है कि स्वर्ग की अप्सराएं उनके आसपास मंडराती रहती है, हालांकि इन्हें सिर्फ वह ही देख सकते हैं। एक मौके पर वह उनसे कहते हैं, "यू आर जेलस बेबीज़।" धरम जी एक वकील के किरदार में हैं। महिलाएं उन पर इस कदर मोहित हैं कि एक महिला जज सिर्फ इसलिए फैसला सुनाने से इनकार कर देती है क्योंकि वह उन्हें फिर से अदालत में देखना चाहती है।

जैसे कि यही सब कुछ काफी नहीं था, फिल्म का बैकग्राउंड म्यूज़िक एक मरी हुई कहानी में हास्य और एहसास को ज़बर्दस्ती उभारने की कोशिश करता है। इसीलिए जब भी छोटा भाई काला, बॉबी देओल का किरदार, नशे में होता है तो हमको बताया जाता है, 'ओए चढ़ गई ओए।'

तीनों देओल को मिलाकर हिसाब लगाएं तो इनके बीच सिनेमा बनाने के 100 साल बीते हैं। मुझे लगता है कि वक़्त अब फिर से नया तलाशने का है।

Adapted from English by Pankaj Shukla, Consulting Editor

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