मेरी माँ ने मुझसे कहा, गोविन्द ऐसा होगा पहले तुम तकलीफ में काम ढूंढोगे, फिर काम में तकलीफ ढूंढोगे- गोविंदा

गोविंदा की नयी फिल्म फ्रायडे रिलीज़ हो चुकी है। इस मौके पर उन्होंने अनुपमा चोपड़ा से अपने करियर और काम करने के तरीक़े को लेकर कई सारी बातें की
मेरी माँ ने मुझसे कहा, गोविन्द ऐसा होगा पहले तुम तकलीफ में काम ढूंढोगे, फिर काम में तकलीफ ढूंढोगे- गोविंदा

80 का दशक ख़त्म होने की कगार पर था तभी एक कमज़ोर से शरीर के, मासूम चेहरे वाले लड़के ने इंडस्ट्री में दस्तक दी। करियर की शुरुआत में उसे सिर्फ साइड रोल्स मिले लेकिन उसने उन किरदारों के साथ भी पूरी ईमानदारी निभायी। हम बात कर रहे हैं गोविंदा की। गोविंदा की ईमानदारी का ही सिला है कि अनगिनत फिल्मों में लगातार छोटे-मोटे रोल्स करने के बाद उन्हें बतौर हीरो भी फिल्में मिली। शुरुआत में वो एक रोमांटिक और एंग्री हीरो के किरदारों में नज़र आये और आगे बढ़ते-बढ़ते वो कॉमिक हीरो बन गए। गोविंदा की कॉमेडी के लोग आज भी कायल हैं, कहा जाता है कि कॉमिक किरदारों में उनके जैसी डायलॉग डिलिव्री कम ही लोग कर पाते हैं। कॉमेडी के अलावा एक और चीज़ थी जिसके लिए गोविंदा की चर्चा आज भी होती है। गोविंदा की लेट होने की आदत, 90 के दशक में अक्सर सुना जाता था कि सुबह की शूट के लिए शाम को पहुंचते थे। कई मौकों पर गोविंदा ने इस बात को स्वीकार भी किया है। लेकिन आज अनुपमा चोपड़ा के साथ इंटरव्यू के लिए वो लेट नहीं हुए बल्कि वक़्त से 5 मिनट पहले ही पहुंच गए। अनुपमा ने उनसे इस बदलाव के बारे में बात की और इसके साथ ही कई और दिलचस्प सवाल किये, पेश हैं उस बातचीत के मुख्य अंश:

अनुपमा चोपड़ा: गोविंदा फिल्म कम्पैनियन में आपका स्वागत है, कितने सालों बाद मिल रहे हैं। माय गॉड! कैसे हैं आप?

गोविंदा: मैं अच्छा हूँ, सब ठीक है।  

अनुपमा: अब आप किस तरह के रोल्स करना चाहेंगे? मुझे याद है जब आपको चुन्नी लाल(देवदास) का रोल ऑफर हुआ था, आपने मना कर दिया था, तब आपने कहा था मैं हीरो हूँ मैं क्यूँ चुन्नी लाल बनूं? तो क्या आप अब भी वही सोचते हैं कि मुझे सिर्फ हीरो ही बनना है? क्यूँकी अब हीरो की परिभाषा भी बदल गयी है। अब वो हीरो क्या है? कौन है? अब इतनी फिल्में हैं जिनमें 4-5 किरदार होते हैं और कोई एक हीरो नहीं होता, मतलब अब ज़माना बदल गया है।

गोविंदा: जिस वक़्त मैंने उस फिल्म के लिए मना किया था, साथ में ताल के लिए भी मना किया था, ये दो जो हैं देश की महान शख्सियतों में से दोनों किरदार हैं, और दोनों ही मुझे पसंद हैं। परंतु, मैं उस वक़्त टॉप पर था और मुझे ऐसा लगा कि यार पता नहीं लोग मुझे ऐसे रोल्स में कुबूल करेंगे या नहीं, और ये भी नहीं पता है इस किरदार की मांग किस हद तक है। जिस वक़्त आप ये फिल्म कर रहे थे, किसी ने मुझसे पूछा कि आप चुन्नीलाल का किरदार कर रहे हैं? अच्छा है, आपको करना ही चाहिए, इतनी बड़ी फिल्म बनने जा रही है। तो मैंने कहा कि देखिये, ये हर वक़्त मुझे सोचना पड़ेगा फिर कि मैं चुन्नीलाल का किरदार निभा रहा हूँ। फिर इसके हर शॉट में, कहाँ से कहाँ जाना है, क्या मूव, कैसे करना है तो फिर वो मुझसे परेशान हो जाएगे। उन्हें लगेगा कि गोविंदा कितने सवाल पूछता है। क्यूंकि लोगों को इसकी आदत नहीं है।

अनुपमा: तो मतलब आपको लगा कि वो आपके अंदर से नहीं आता?

गोविंदा: हाँ मतलब, मुझे ये आदत है मैं पूरा समां, उस कहानी का पूरा समां पहले अन्दर ले लेता हूँ, फिर वो बाहर निकालता हूँ। क्यूँकि मुझे ऐसा लगता है जो आर्टिस्ट समां बांधते हैं वो अलग होते हैं, और जो काम करके चले जाते हैं वो मुझे नहीं पता वो क्या हैं।

अनुपमा: तो आप अब किस तरह के रोल्स करना चाहते हैं?

गोविंदा: मैं अब हर चीज़ कर रहा हूँ, मैंने विलेन का रोल किया 'किल दिल' में, मैंने हैप्पी एंडिंग में कॉमिक किरदार किया, अब मैं अपनी आने वाली फिल्म 'फ्रायडे' में हीरो जैसा नज़र आ रहा हूँ। मैंने कई फिल्में की जिसमें मैं लीड में नहीं था लेकिन वो हिट हुई। मैं किरदार निभा रहा था। इसलिए मुझे ऐसा लगता है मैं ईमानदारी से काम करूँ, काम अच्छा कर दिया तो हो गया।

अनुपमा: आप अक्सर कहते हैं कि 90वें के दशक में तो स्क्रिप्ट्स ही नहीं होती थी, सेट पर जाकर पता चलता था कि आज करना क्या है। तो आपने जैसे डेविड (धवन) के साथ इतनी सफल फिल्में बनायी, तो उनकी स्क्रिप्ट थी या आप दोनों वहीं बना रहे थे?

गोविंदा: डेविड का शुरुआत का जो स्वभाव रहा है, जिसे कहते हैं कि पूर्णतः भरोसा किसी पर होना। तो उसे मुझपर पूरा भरोसा था कि ये काम दे दिया है तो ये काम को पूरी ईमानदारी से करेगा, तो घबराहट नहीं थी किसी तरह की। काम जिस वक़्त शुरू होता था, अब जैसे 'कुली नंबर 1' की जिस दिन शूटिंग शुरू हुई तो मैं गाड़ी में डेविड से कहते हुए आ रहा था मुझे लगता है कुली नंबर 1 टाइटल रख दिया है, 6-7 घंटे तो इस फिल्म की शूटिंग ही शुरू नहीं होगी, ऐसा मुझे लग रहा है। तो डेविड ने कहा, चीची भैया आप शुभ कहा करिए। तो मैंने कहा नज़रिया क्या है? अभी तो कुछ भी सुनाया नहीं, अभी जाऊंगा तो समझूंगा, इसको पढ़ूंगा-लिखूंगा। बहरहाल! 6-7 घंटे शूटिंग नहीं हुई। कई चीज़ों पर बात की और मैं कह रहा हूँ कि ये तो मैं कर चुका हूँ पहले। ये सब ऐसा लगेगा कि ये तो देखा हुआ है। लगेगा वही क़ादर खान साहब हैं, वही गोविंदा है, वही शक्ति कपूर, वही सब है। फिर शक्ति कपूर गोविंदा के साथ है तो वही नाक से डायलॉग करेगा, ये सब तय है। अब क्या करें? तो एक किरादर याद आ गया जो मैंने कहीं देखा हुआ था। तो मैंने बोला यही किरदार निभाता हूँ। तो मैंने कहा क़ादर खान जी अगर आप मुझे इजाज़त दें तो मैं थोड़ा सा ऐसे पेश करता हूँ। वो उन्हें बहुत अच्छा लग गया, कहने लगे हाँ यही करेंगे। हालांकि वो सेट छोड़कर जा रहे थे, काफी गुस्से में थे कि ऐसे थोड़ी काम होता है, तुम लोग प्रोड्यूसर का ख्याल नहीं कर रहे हो और इस बीच मैं गाली खाने ही वाला था कि इतने में उन्हें मुझपर प्यार आ गया, अरे यार ये अच्छा है, ये अलग है। आज तक इस तरह का किसी हीरो ने किया नहीं है, ऐसा हीरो कभी सोचा नहीं होगा जो ऐसे बात करता है। तो वो भी एक नज़रिया था। असल ज़िंदगी में होते हैं, आम आदमी ऐसे ही है सब। सभी नहीं होते लेकिन जैसे एक तरह से चल रहा है सब उसमें जो थोड़ा सा अलग है तो परदे के लिए तो वही किरदार है कि हम इसे ही करेंगे और निभाएंगे तो लोग याद रखेंगे। तो फिर ऐसे ही फिल्में मैं करता रहा। उसके बाद फिल्में ही वही मिलने लगी, 'हसीना मान जाएगी' के सेट पर वही हुआ 'बड़े मियां छोटे मियां' के सेट पर भी वही हुआ, आदरणीय अमिताभ बच्चन जी ने मुझसे कहा कि गोविन्द ये जो तुम पतली सी आवाज़ निकल रहे हो। ये थोड़ी सी उस टाइप की लगेगी। मैंने कहा ये इस टाइप उस टाइप आप नहीं सोचिए। हम यही करेंगे, आपकी दमदार आवाज़ और मेरी ऎसी आवाज़, ये दोनों मिलेंगी कमल हो जाएगा।

अनुपमा: तो आप बस कुछ नया बना रहे थे, सेट पर ही कुछ न कुछ नया कर रहे थे?

गोविंदा: हाँ मैं वहीं पर शुरू हो जाता था, और इसमें मैं पूरा क्रेडिट नहीं लूँगा, ये बहुत ऊपर वाले ने मुझपर कृपा की हुई थी। कि साथ में लोग ऐसे मिल गए, आर्टिस्ट ऐसे मिल गए। अच्छा ऐसे बहुत से सीनियर्स थे जो ये समझते थे कि ये बहुत ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं है ईमानदार है। ईमानदारी में करेगा जो करेगा। अब उसमें वो संभाल लेते थे कि गलत क्यूँ हो, गोविंदा है। अच्छे से कम करना है। खासतौर पर आदरणीय क़ादर खान साहब, फिर शक्ति कपूर जी, आदरणीय दिलीप साहब का तो बयान ही नहीं कर सकते, बहुत ही महान उनकी शख्सियत, देवत्य की तरह, आदरणीय अमिताभ बच्चन जी, आदरणीय राजेश खन्ना जी। मुझे ऐसा लगता नहीं कि इस तरह का प्रेम आगे की पीढ़ी को शायद ही देखने को मिलेगा, क्यूंकि हम लोग बहुत ख़ुशकिस्मत रहे।

अनुपमा: लेकिन जो आज की पीढ़ी है उनके दिल में आपके लिए बहुत प्यार है। आपको पता है रणवीर की जो वाट्सऐप डीपी में तस्वीर है वो आपकी फोटो है।

गोविंदा: हाँ वो देखा मैंने। और मैं जिस वक़्त उसके साथ में काम कर रहा था, तो मैंने जो बहुत सारा काम जो पहले कभी किया है फिल्म में वो भूल गया हूँ तो वो जिस वक़्त मेरी एक्टिंग कर रहा था तो मैंने कहा, ये हुआ है क्या? अच्छा लग रहा है यार देखने में। ये इतना बढ़िया दिख रहा है। मैंने कहा मंगा यार वो सिनेमा देखूंगा मैं। ये कब हुआ, कैसे हुआ क्या है, क्यूंकि मुझे ऐसे लगता है कि जब हम अपने किये हुए काम से, फिल्मों से प्रभावित हो जाते हैं तो आगे अच्छा नहीं कर पाते। तो जो पीछे छोड़ दिया है, वो वहीं रहे तो अच्छा है। कभी कभार आप उससे प्रेरणा ले सकते हैं कि हाँ इसे कैसे बेहतर करके निकलें, और अच्छा काम करी ताकि आगे बढ़ें। वरना मैं नहीं देखता पीछे, मुझे ऐसा लगता है बोझ हो जाता है।  

अनुपमा: आपने ताज होटल में भी नौकरी के लिए अप्लाई किया था?

गोविंदा: हाँ, वहां मैंने स्टुअर्ड (बैरा) की नौकरी के लिए इंटरव्यू दिया था। लेकिन मैं अंग्रेज़ी में नहीं बोला पाया, बल्कि मैं उनके सामने बोल ही नहीं पाया। उन्होंने कहा इसमें तो आत्मविश्वास ही नहीं है, इतना शर्मीला है, ये कैसे बात करेगा, लेकिन फिर वो बात हुई नहीं।

अनुपमा: अच्छा आप वक़्त के इतने पाबंद कब हुए? मुझे पता था कि आज आप इंटरव्यू के लिए आएंगे, 5 बजे का वक़्त था और आप बिलकुल वक़्त पर पहुंच गए। वरना लोग कहते थे गोविंदा तो कम से कम 3-4 घंटे लेट होगा ही।

गोविंदा: हाँ, लोग कहते थे सुबह की शूट में शाम को पहुंचेगा, और भी किस्से थे। लेकिन बस अब खुद ही हो गया।

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