मूवी रिव्यू : सुई धागा मेड इन इंडिया

शरत कटारिया की वरुण धवन और अनुष्का शर्मा स्टारर छोटे शहर में गारमेंट बिज़्नेस शुरू करने वाले इंसान की कहानी पर बनी फिल्म मार्मिक तो है पर संतुष्ट नहीं कर पाती।
मूवी रिव्यू : सुई धागा मेड इन इंडिया

निर्देशक: शरत कटारिया

कलाकार: अनुष्का शर्मा, वरुण धवन

सुई धागा: मेड इन इंडिया सच्ची, सरल लेकिन पूरी तरह खरी न उतरने वाली फिल्म है। लेखक और निर्देशक शरत कटारिया हमारे सामने एक सुंदर और बिल्कुल जीते जागते किरदारों वाला संसार रचते हैं, लेकिन बीच में कहीं उनको याद आ जाता है कि ये बॉलीवुड फ़िल्म है और वह निकल जाते हैं एक परी कथा के रास्ते पर। फिल्म के कुछ सीन्स ने मुझे वाकई रुला दिया लेकिन फिर कुछ सीन्स ऐसे भी आए कि लगा अपने बाल नोच लूं।

शरद के लेखन में वरदान बसता है। ये उन्हीं की कलम का कौशल है जो साधारण सी दिखने वाली चीज़ों में जादू ढूंढ लेता है। उनकी पिछली फिल्म दम लगा के हइशा दो साधारण से दिखने वाले लोगों के बीच की एक ऐसी अनोखी प्रेम कहानी थी जिसे उन्होंने बहुत करीने से कैनवास पर उतारा था। सुई धागा भी हमको अपनी कहानी में वैसा ही डुबकी लगवाती है। फिल्म की शुरूआत होती है एक बहुत ही प्यारे से, लंबे और लगातार चलने वाले शॉट के जरिए मौजी का परिचय देने से, जिसके जीवन के आदर्श वाक्य, "सब बढ़िया है" से फिल्म शुरू भी होती है और ख़त्म भी। हमें सुबह सवेरे घर में होने वाले नित्य कार्यक्रम दिखते हैं, चुपचाप सी रहने वाली जिद्दी बीवी ममता दिखती है औऱ दिखती है सुबह का नाश्ता लगाती उसकी गोल मटोल मां। उसका हमेशा ताने मारने वाला और झुंझलाते रहने वाला बाप भी दिखता है, कपड़े धोते हुए।

नाश्ते पानी और बेकार के काम पर जाने के लिए रोज़ तय किए जाने वाला थकाऊ सफर की मंज़िल है एक ऐसी जगह जहां मौजी न सिर्फ हर काम के लिए तैयार गुलाम बना दिखता है बल्कि जब उसके मालिक की मर्ज़ी होती है तो वह उसके मनोरंजन के लिए कुत्ता भी बन जाता है। ममता उसमें जोश भरती है और एक दिन मौजी ये बेइज्ज़ती वाला काम छोड़कर खुद बिज़्निसमैन बन जाता है। वह उसी कारोबार को दोबारा शुरू करता है जिसने उसके दादाजी को रास्ते पर  ला दिया था। ममता और मौजी का अपने पैरों पर खुद खड़े होने का संघर्ष यहीं से शुरू होता है।

फिल्म दर्शकों को तब तक लुभाती रहती हैं जब तक इसकी कहानी छोटी छोटी जीतों के साथ आगे बढ़ती जाती है। ममता और मौजी एक सिलाई मशीन के लिए लगातार मेहनत करते रहते हैं। फिल्म के डायरेक्टर शरत दोनों की कामयाबी की खुशी और इसका ड्रामा अच्छे से सिलते हैं और ये दर्शकों को छू भी जाता है। वरुण धवन फिल्म में मस्त मौजी के किरदार में कमाल करते हैं, ये किरदार अपना दर्द छुपाकर दूसरों का दुख उधार लेता है। हालांकि उनकी बॉडी लैंग्वेज  किरदार के मुताबिक नहीं है लेकिन वह अपनी मेहनत और दर्शकों में अपने लिए बन चुके प्यार के सहारे इसे निभा ले जाते हैं।

अनुष्का शर्मा दम तो दिखाती हैं लेकिन उनका संघर्ष खुद अपने आधे अधूरे लिखे किरदार से भी है। इन दोनों के साथ हैं साथी कलाकार रघुवीर यादव, जो डेली सोप देखते वक़्त रोने वाले पिता के किरदार में ज़बर्दस्त हैं और यामिनी दास जो मौजी की मां के रूप में सारी तालियां बटोर ले जाती हैं। ऐसा लगता है कि इनके संवाद और बातचीत किसी ऐसे की ज़िंदगी से चुरा लिए गए हैं, जिन्हें हम जानते रहे हैं। दोनों के बीच ऐसी भावुक नज़दीकियां बनती हैं कि हम तुरंत उनका ख्याल सा रखते लगने लगते हैं।

ममता और मौजी के बीच की प्रेम कहानी भी शरद बहुत ही सलीके से बुनते हैं। ये एक ऐसा जोड़ा ह जिसके पास साथ वक़्त बिताने की फुर्सत ही नहीं है। दोनों के कुछ शुरूआती सीन्स ऐसे भी हैं जहां ये दोनों खिड़कियों और जालियों से झांककर बात करते हैं। दोनों के बीच की बाधाएं दिखती है। इज़्ज़त और आत्मनिर्भरता की दोनों की दौड़ में प्यार पनपता है। ये आपको आनंद भी देता है और आगे भी ले जाता है।

लेकिन, इंटरवल के बाद फिल्म की कहानी में एहसास कम और एहसान ज़्यादा दिखने लगते हैं। अच्छी खासी चलती गाड़ी में एक लालची सेठ फच्चर फंसा देता है। एकाएक, सीधे सादे और बिना पढ़े लिखे कारीगर फैशन शो के डिज़ाइनर कपड़े बनाने लग जाते हैं। निर्देशन की नकेल ढीली पड़ने लगती है। कहीं हमसे देशभक्ति का धागा छूट न जाए तो बीच में हिंदुस्तानी हुनर और चीनी मशीनों का चरखा भी डाल दिया जाता है। ये न सिर्फ बनावटी लगता है बल्कि निर्देशक की सुस्ती भी दर्शाता है। लेकिन हालात के हाथ से निकलने वाले लम्हों में भी किरदार अपनी पकड़ बनाए रखते हैं। मैं तो फिल्म की कहानी से करीब करीब पूरी तौर से कट चुकी थी लेकिन मौजी और बापू जी का सीन मुझे फिर से कहानी के सांचे में खींच लाया।

तो सुई धागा: मेड इन इंडिया देखकर संतोष तो नहीं होता लेकिन ये है मार्मिक कहानी। अगर फिल्म को मुझे एक लाइन में समझाना हो तो मैं ज़िक्र करना चाहूंगी कि अनु मलिक के रचे गाने – चाव लागा – का जो दम लगा के हइशा के गाने मोह मोह के धागे जैसा दिल को झुमाता तो नहीं है लेकिन फिर भी सुनने लायक तो है ही।

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