मुग़ल काल की ‘कभी ख़ुशी कभी गम’ होगी तख़्त : करण जौहर

फिल्म निर्माता ने अपनी अब तक की सबसे बड़े फिल्म को बनाने के बारे में, संजय लीला भंसाली के बनाये हुए ऐतिहासिक कहानियों के बार तक पहुँचने और, अपने लेखकों को सेंटर स्टेज देने के नज़रिए पर बात की
मुग़ल काल की ‘कभी ख़ुशी कभी गम’ होगी तख़्त : करण जौहर

तख्त के लिए बधाई। अपनी फिल के बारे में कुछ बताइए?

अभी सिर्फ इतना ही बता सकता हूँ कि ये मुग़ल काल पर आधारित है। यह इतिहास है। यह दो युद्ध कर रहे भाइयों के बारे में है और हमारे जाने-पहचाने तथ्यों पर आधारित है। इसके अलावा, अभी कुछ भी कहना बहुत जल्दी हो जाएगा।

क्या ये कहना ठीक होगा कि यह आपका अब तक का सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है?

हां, समृद्धता और पैमानों के नज़रिये से देखें तो यह मेरी अब तक की सबसे बड़ी फिल्म है। ये एहसास डरावना और सरसरी पैदा करने वाला है। मैं हर पल डरा रहता हूँ। फिल्म की घोषणा ने मुझे हिलाकर रख दिया है। मैं एक तरह से पथरा गया हूँ। यह स्केल की बात नहीं है। यह रिश्तों की बुनावट कीभी बात है। यह मुगल काल की के3जी की तरह है। लेकिन यह बहुत आगे है, यहाँ विश्वासघात ज़्यादा है। इसमें अदालत की राजनीति की उथल-पुथल है। यह बनावट में इतनी समृद्ध है।

आपके पास एक शानदार स्टार कास्ट है। क्या ये सभी कलाकार इसलिए चुने गए क्योंकि वे किरदारों में फिट होते हैं या इसलिए भी क्योंकि आप स्टार्स को लेना चाहते थे?

यह टैलेंट का एक असामान्य सा मिक्सचर है। ये वो अभिनेता हैं जो बराबर की राहों पर चले हैं, हमारे पास करीना (कपूर) जैसी गतिशील सुपरस्टार है, अनिल कपूर हैं जिन्हें मैंने पहले कभी निर्देशित नहीं किया है – लेकिन हर अदाकार सही निशाने पर फिट होता है। ऐसा नहीं है कि मैं उनके पास इसलिये गया हूं क्योंकि मेरी उन तक पहुंच है। यह दो अलग बाते हैं। इनमें से हर किसी ने इस तरह का किरदार कर रखा है और फिर भी हर कोई इसमेंपूरी तरह से फिट है।

तख्त की घोषणा ने सबकी धड़कनें बढ़ा दी हैं क्योंकि आपने अपने लेखकों सुमित रॉय और हुसैन हैदरी को सेंटर स्टेज दे दिया। आपने ऐसा करने का फैसला क्यों किया?

यह मेरा स्वभाव था। मैंने हमेशा कहा है कि हमें लेखकों को सशक्त बनाने की ज़रूरत है। लेखन के कारण ही फिल्में फेल और सफल होती हैं। उन्हें हम फिल्म की कमान कैसे नहीं देते जब फिल्म ही लेखकों के बारे में है? मैं इसपर काम करूंगा लेकिन इस खेल के सच्चे लीडर लेखक हैं। मैं वास्तव में शूजीत सरकर जैसे निर्देशक का सम्मान करता हूं जो जूही चतुर्वेदी को इतना सम्मान और प्रमुखता देते हैं। राजू हिरानी भी अभिजीत जोशी के साथ यही करते हैं। मैं इंडस्ट्री में 20 सालों से हूँ और यह वक़्त की बात है। मैंने इसके बारे में किसी से भी बात नहीं की। इस काम को सिर्फ किया जाना था। मैं लेखकों को उनका सही मुकाम देना चाहता था।

हिंदी सिनेमा में संजय लीला भंसाली द्वारा ऐतिहासिक फिल्मों का एक बार सेट कर दिया गया है। क्या आपको डर है कि तख़्त की तुलना उनकी फिल्मों से की जाएगी?

मैं झूठ बोलूंगा अगर मैं यह स्वीकार नहीं करता कि तुलना बहुत चुनौतीपूर्ण चीज़ है। मुझे संजय के सौंदर्य बोध से प्यार है। तुलना मुझे डराती है लेकिन मुझे उम्मीद है कि मैं अपना मुकाम हासिल कर लूंगा। उम्मीद करता हूँ कि मैं तुलना से अभिशप्त ना हो जाऊं। मैं अभी सैराट से उबर रहा हूँ और मैं वहां फिर से नहीं जा सकता। मैं इससे अभिभूत भी नहीं होना चाहता हूँ। उन्होंने एक ऊंचा बार सेट किया है और अगर मैं उनके काम को सम्मान दे सकूं तो मुझे गर्व होगा। मेरा बहुत सा सिनेमा यश चोपड़ा को अर्पित है लेकिन तब भी मैंने इसमें अपना नज़रिया दिया है और अपने खुद के रंग भरे हैं। तुलना से ज़्यादा, मैं संभावित कहानी के साथ न्याय ना कर पाने से डरा हुआ हूँ। मैं बस उम्मीद कर रहा हूँ कि मैं उपलब्ध सामग्री के साथ न्याय कर पाऊं।

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