धड़क की रिलीज से पहले ही सितारों सी शोहरत मिल जाने के सवाल पर ये बोले ईशान खट्टर और जान्हवी कपूर

नागराज मंजुले की सैराट की रीमेक है धड़क। शशांक खेतान निर्देशित इस फिल्म के सितारों से समझिए कि क्या अच्छा एक्टर बनने के लिए अच्छा इंसान होना भी जरूरी है? और इन उभरते कलाकारों ने अपने आसपास के लोगों से ऐसा क्या सीखा जो इन्हें नहीं करना चाहिए।
धड़क की रिलीज से पहले ही सितारों सी शोहरत मिल जाने के सवाल पर ये बोले ईशान खट्टर और जान्हवी कपूर

आप दोनों स्टार न्यूकमर्स हैं लेकिन दर्शकों ने अभी से आप में इतनी दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी है, क्या ये अजीब लगता है? आपकी इसे लेकर क्या प्रतिक्रिया रहती है?

जान्हवी कपूर:  मैं समझती हूं कि ये सब खासतौर से मेरे माता पिता और उनके काम की वजह से है और साथ ही इसलिए भी क्योंकि धड़क को लेकर लोगों में इतनी उत्सुकता बन गई है। मुझे नहीं लगता कि इस सबकी मैं कोई वजह हूं क्योंकि मैंने ऐसा कुछ अभी पाया नहीं है, और न ही मैंने ऐसा कुछ काम ही किया है कि लोग मुझमें इतनी दिलचस्पी लें। उम्मीद है कि आगे चलकर मैं ऐसा कुछ ज़रूर कर पाऊंगी। मैं इसे लेकर सजग हूं। ये अच्छा लगता है और मैं इसे लेकर लोगों का बहुत आभार भी मानती हूं। लेकिन, मुझे नहीं लगता कि मैं इसे लेकर बहुत गंभीर हो सकती हूं, मुझे अभी वह मुकाम हासिल करना बाकी है।

क्या इसका दबाव महसूस करते हैं?

ईशान खट्टर:  नहीं, मुझे लगता है कि ये नज़रिये की बात है। अगर आप इसको एक खास तरीके से देखें तो आप उन लोगों के प्रति जिम्मेदारी महसूस कर सकते हैं जिन्हें आपके काम को लेकर इतनी उम्मीदें और इतनी आशाएं हैं। मुझे नहीं लगता कि इसका मेरे ऊपर कोई दबाव है। ये अच्छा लगता है और शर्तिया तौर पर ये एक जिम्मेदारी का एहसास जगाता है कि इतने सारे लोग आपकी तरफ देख रहे हैं। ये आपके भीतर और आगे जाने, इस बारे में कुछ करने और इस पर खरा उतरने की एक उत्तेजना ही जगाता है।

ईशान, आप बियांड द क्लाउड्स कर चुके हैं, मैंने आपका एक इंटरव्यू देखा जिसमें आप इसके डायरेक्टर माजिद मजीदी के हवाले से बता रहे हैं, "ये तो है कि आप अच्छे कलाकार और एक अच्छे ऐक्टर बनना चाहते हैं लेकिन ज़्यादा ज़रूरी है ये कि आप एक अच्छे इंसान बने और बाकी चीजें अपने आप आ जाएंगी।" क्या आप दोनों ये मानते हैं कि अच्छे ऐक्टर्स अनिवार्य रूप से अच्छे इंसान भी होते हैं?

जान्हवी:  मेरा इसमें यकीन है। मुझे लगता है आप परदे पर क्या महसूस कर रहे हैं, इसके बारे में दर्शकों को भरोसा दिलाने के लिए ईमानदारी बहुत ज़रूरी है। मां (श्रीदेवी) भी हमेशा यही कहती थीं कि एक अच्छा ऐक्टर बनने के लिए जो चीज़ सबसे पहले ज़रूरी है वह है एक अच्छा इंसान होना। अगर आपके अंदर किसी भी तरह की निराशा है, ईर्ष्या है या कोई भी नकारात्मक बात दिल में है तो इससे आपका अभिनय भी दिखावटी लगेगा।

ईशान: अगर हम इस बात पर वाकई इतने नाजुक तरीके से सोच रहे हैं तो ऐसे तमाम ऐक्टर्स है जिनके बारे में लोगों को लगता है कि उनका बर्ताव सही नहीं होता और जो इस खांचे में परफेक्ट नही है। मुद्दा ये है कि मेरे हिसाब से ऐक्टर्स को ज़्यादातर गलत समझा जाता है। जब लोग किसी ऐक्टर या मशहूर ऐक्टर या फिल्म स्टार से रू-ब-रू हो रहे होते हैं तो वे पहले से बैकफुट पर होते हैं। उनको जानने से पहले ही वे हर काम पर अपना फैसला सुनाने को तैयार रहते हैं और बातें संदर्भ से अलग हो जाती हैं और तिल का ताड़ बना दिया जाता है।

इसके बावजूद ऐसे भी ऐक्टर्स हैं जो बहुत अच्छे हैं पर जिन्होंने बुरा बर्ताव किया है और जिन्होंने ऐसी चीजें कर रखी हैं जो नैतिकता के पैमाने पर कभी सही नहीं कही जा सकती। मुझे लगता है कि आप एक काबिल और असरदार ऐक्टर हो सकते हैं लेकिन लोग आपके साथ सहानुभूति रखें, आपके बारे में अच्छी बातें करें इसके लिए आपके भीतर कुछ न कुछ तो अच्छा होना ही चाहिए। आपके भीतर मूल रूप से नाजुकपन और संवेदनशीलता होनी ही चाहिए। अच्छाई का मूल स्वरूप।

जीवन में क्या नहीं करना चाहिए, इसे लेकर आप दोनों ने अपने आसपास के लोगों से क्या सीखा है?

जान्हवी:  मैंने हाल ही में ये सीखा है कि मुझे जितना मुमकिन हो सके चुप रहना चाहिए। कई बार मैं ऐसी ऐसी बातें अपने बारे में पढ़ती हूं जो मैंने कही भी नहीं होती और ये मुझे अपने भीतर ही दुबक जाने को मजबूर करता है।

बातें जो आपने कहीं हैं या जो लोगों ने आपके बारे में लिखा है?

जान्हवी:  बातें जो मैंने कहीं हैं हालांकि ये उन्हीं का बखान होता है लेकिन मुझे लगता है मुझे बयानों में अंतर करना नहीं आता। जैसे कि कल ही हमसे एक प्रेस कांफ्रेस के दौरान पूछा गया – अगर आपको किसी ऐक्टर की बायोपिक करने का मौका मिले तो आप किसकी बायोपिक करना पसंद करेंगी? अगर ये सवाल मुझसे ये (ईशान) पूछे तो मैं कहूंगी कि इन इन ऐक्टर्स ने वाकई बहुत दिलचस्प ज़िंदगियां जी हैं तो ऐसा कुछ करने की कोशिश करना ही मज़ेदार होगा। तो मैंने कहा मधुबाला जी, मीना कुमारी जी।

और फिर मेरे डैड ने पूछे एक मैसेज भेजा, ये पूछते हुए, "तुमने ऐसा क्यों कहा कि तुम किसी फिल्म में मधुबाला और मीनाकुमारी बन सकती हो?"  लिखने वालों ने सवाल तो हटा दिया और पढ़ने में ये ऐसा लग रहा था कि मैं इन महान प्रतिष्ठित लोगों जैसी हो सकती हूं जबकि मैं इन लोगों के पैरों की धूल के बराबर भी नहीं है। ये इतना डरा देने वाला है, मुझे समझ ही नहीं आता कि कब मैं क्या कहूं। तो मैं बस चुप रहना चाहती हूं।

ईशान: मेरे ख्याल से किसी पिछले अनुभव को अपने नए काम में न लेकर आना। ये बात मैं धड़क और शशांक (फिल्म के डायरेक्टर) से कनेक्ट करके बताता हूं। हालांकि हम पुराने अनुभवों को साथ लेकर ही आते हैं और इससे सीखते भी हैं, लेकिन मैंने जो सीखा वह ये कि इसका अपने ऊपर किसी तरह से असर नहीं होने देना है। फिल्म की शूटिंग के दौरान एक जगह पर शशांक को लगा कि मैं इसे खास तरीके से कर रहा हूं जबकि वह उस सीन में एक अलग तरह का एक्ट चाहते थे। इस किरदार के लिए जो संदर्भ मेरे पास थे वे 90 के दशक के फिल्मों के थे जिनमें हीरो की एक ठसक होती थी, शायद शशांक ने सलमान भाई के साथ बहुत सी फिल्में देखी हैं। जहां तक मैं समझता हूं शुरू में मैं थोड़ा झिझक रहा था या फिर मैं इसे एक खास तरह से करने की कोशिश कर रहा था तो वह मेरे पास और बोले, "सुनो, ये जो तुम कर रहे हो इसका कोई मतलब होना चाहिए। हर चीज़ का एक सिरा है। इसे इस टोन में तो बिल्कुल नहीं करना है क्योंकि तुम असल मधुकर जैसे लग नहीं पा रहे हो- तुम बस मधुकर की तरह मस्त दिखने का बहाना कर रहे हो।" मुझे याद है कि फिर मैंने इसे एक बार किया और उन्होंने सब बंद करा दिया और बोले, "ईशान, ऐक्टिंग करते मत लगो।" और फिर हमें वह मिल गया जो हमें चाहिए था। तो मुझे लगता है कि मुझे अपने भीतर की झिझक थोड़ी कम करनी होगी।

ईशान, बियांड द क्लाउड्स ने जब उम्मीद के मुताबिक कारोबार नहीं किया तो आपको कैसा महसूस हुआ और मुझे तो लगता कि आपने इसमें बहुत अच्छा काम किया था, एक बहुत ही शानदार डेब्यू। इस कम उम्र में ऐसे समय से आप कैसे बाहर निकलते हैं और आगे बढ़ पाते हैं?

ईशान:  खुशकिस्मती से उस वक्त मेरे पास धड़क थी और मैंने इसकी शूटिंग बस खत्म ही की थी। मुझे इस सबका अंकगणित, बीजगणित ज्यादा समझ आता नहीं है और मैं चाहता भी नहीं था कि इस सबका हिसाब लगाकर देखूं। हां, मैंने चीजों को लेकर अच्छी समझ बनाने और इसे सीखने की कोशिश ज़रूर की। शुरू के दो-तीन दिनों तक तो मुझे काफी खराब लगा क्योंकि मैं और ज़्यादा लोगों के ये फिल्म देखने की उम्मीद कर रहा था। मुझे जो समझ आया, और इसमें मेरी मां ने वाकई मदद की, वो ये कि हर फिल्म की अपनी एक किस्मत होती है। ये सुनने में थोड़ा आदर्शवादी लग सकता है लेकिन मां ने कहा कि तुम्हारे साथ ये होना पहले से तय था। मजीदी सर के साथ काम करना ऐसा अनुभव रहा जिसकी कभी बराबरी नहीं हो सकती। मां ने मुझे इसके अच्छे पहलुओं को देखने के लिए समझाया। अभी ये फिल्म डिजिटल पर आई नहीं है। तमाम देश और वितरण क्षेत्र ऐसे हैं जहां ये अब भी रिलीज होनी बाकी है। और हां, अभी ये इसके जीवन का अंत या वैसा कुछ भी नहीं है।

Adapted by Pankaj Shukla, consulting editor 

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